थोड़ा मन को बड़ा करो
सब हरा-भरा हो जायेगा।
सूखी न होगी वर्षाऋतु,
वसन्त न सूखा जायेगा।।
सँकरे मन की सँकरी गलियों को
थोड़ा विस्तार दो।
थोड़ा आँखें और खोलकर
देखो इस संसार को।।
सब हरा-भरा हो जायेगा।
सूखी न होगी वर्षाऋतु,
वसन्त न सूखा जायेगा।।
सँकरे मन की सँकरी गलियों को
थोड़ा विस्तार दो।
थोड़ा आँखें और खोलकर
देखो इस संसार को।।
No comments:
Post a Comment