Thursday, December 9, 2010

शिक्षा

शिक्षा किसी भी समाज की अपरिहार्य आवश्यकता है। पर प्रश्न है कि उसशिक्षा का स्वरूप कैसा होना चाहिये? आजसमाज में शिक्षा के बाज़ारीकरण की प्रवृत्ति बढ रही है। आज का अभिवावक अपनें बच्चों को महंगी से महंगीव्यावसायिक शिक्षा देना चाहता है। ऎसा करते समय वह यह नही विचार करता की इसका समाज पर क्या प्रभावपडेगा? अपने नौनिहालों को शैशव काल से ही वह व्यवसाय_प्रधान शैक्षिक वातावरण प्रदान करता है यदि कोईअभिभावक इसमें आर्थिक या किन्ही अन्य कारणों से पीछे रह जाता है तो वह इस बात को लेकर सदैव चिन्तितरहता है कि मेरे बच्चे की नौकरी लगेगी कि नही? इसी द्वन्द के चलते अभिभावक अपने बच्चे पर लगातार अच्छेअंक लाने का दबाव बनाये रखते हैं। ऎसे में कभी-कभी परीक्षा में असफल होनें पर घर से कोऎ मनोवैज्ञानिकसहारा पाने के कारण बच्छे आत्महत्या जैसे घृणित काम कर ने का प्रयास करते हैं और सफल भी होते हैं। तबमाता-पिता को थोडी अक्ल आती है पर तब तक तीर कमान से निकल चुका होता है। आज के सामाजिकवातावरण ने व्यक्ति विशेषकर युवामन को कायर बना दिया है उससे उसकी मौलिकता छीन ली है जिसके कारण वेकिंकर्तव्यविमूढ होकर आत्महत्या जैसी कायरतापूर्ण हरकतें कर बैठते हैं। आज समाज के प्रत्येक व्यक्ति मेंधैर्य,संतोष,त्याग और् सहनशक्ति जैसे गुणों की अपरिहार्य आवश्यकता है अन्यथा गिने-चुने लोग ही बचे जोमनोरोग से ग्रस्त हों।

3 comments:

  1. ममता जी, अपने ब्लॉग पर आपकी गंभीर और सार्थक टिप्पणी पढकर आपके ब्लॉग तक आया.. आपकी हिंदी भाषा पर काफी अची पकड़ है :) आप शायद जे एन यू के संस्कृत केंद्र से जुडी हैं.. मेरे ब्लॉग जगत में आने के पीछे इसी केंद्र का योगदान है.. पर इधर आलस के कारण ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ. आप भी ज़रा नियमित लिखें तो अच्छा रहेगा.. :)

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  2. यह पोस्ट मुझे अच्छा लगा। आप इसकी निरंतरता वनाए रखें।

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