मैं तुम्हें क्यों राग सुनाऊं
जब वीणा के स्वर सोये हैं।
तंत्री में जब राग नहीं है
शब्द बने अक्षर सोये हैं।
मानस में भूचाल मचा है
अंतस् झंझावात बसा है
कौड़ी भर की इस दुनिया में
कौड़ी में ही मन रमता है।।
फिर बोलो कैसे राग सुनाऊं?
स्पन्दन मृतप्राय पड़े हैं
क्रन्दन से हृदय भरे हैं
फिर कैसे मैं खुलकर गाऊं?
जब वीणा के स्वर सोये हैं।
तंत्री में जब राग नहीं है
शब्द बने अक्षर सोये हैं।
मानस में भूचाल मचा है
अंतस् झंझावात बसा है
कौड़ी भर की इस दुनिया में
कौड़ी में ही मन रमता है।।
फिर बोलो कैसे राग सुनाऊं?
स्पन्दन मृतप्राय पड़े हैं
क्रन्दन से हृदय भरे हैं
फिर कैसे मैं खुलकर गाऊं?
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