लशुन (लहसुन) आयुर्वेद में शाकवर्ग के अन्तर्गत आता है अर्थात् यह एक शाकीय पौधा है। प्रख्यात आयुर्विद् वाग्भट विरचित आयुर्वेद ग्रंथ 'अष्टांगहृदयम्' के उत्तरप्रकरण के रसायनविधिरध्याय में लहसुन की उत्पत्ति से संबंधी एक रोचक कथा प्राप्त होती है। जिसमें बताया गया है कि लशुन की अशुभ उत्पत्ति हुयी है ।देवताओं और दैत्यों द्वारा समुद्रमंथन से जो अमृत निकला राहु ने उस अमृत में से चुराकर कुछ अमृत पी लिया । तब भगवान् विष्णु ने तत्काल सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया।राहु के गले में से जो अमृत की बूंदें भूमि पर गिरीं उनसे लहसुन की उत्पत्ति हुयी। इसी दैत्यदेह से उत्पत्ति की मान्यता के कारण द्विज इसको नहीं खाते थे।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि साक्षात् अमृत से उत्पन्न होने के कारण यह अमृत के समान गुणकारी है। लहसुन वात रोग की प्रमुख औषधि है। आयुर्वेद में शीतकाल में अधिक लहसुन सेवन का विधान है। सामान्यतः सभी ऋतुओं में लहसुन सेवनयोग्य है परन्तु शीतकाल उसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त है।
यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि साक्षात् अमृत से उत्पन्न होने के कारण यह अमृत के समान गुणकारी है। लहसुन वात रोग की प्रमुख औषधि है। आयुर्वेद में शीतकाल में अधिक लहसुन सेवन का विधान है। सामान्यतः सभी ऋतुओं में लहसुन सेवनयोग्य है परन्तु शीतकाल उसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त है।
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